Friday, July 20, 2012

अब के सावन मेघा रे ...

अब के सावन मेघा रे ,
जो तूँ ना आयी उनके साथ
तो मेरी प्यास तेरे आने से भी ,
बुझ ना पायेगी |

और किसी झरोखे से ....
उन्हें खोजती मेरी नज़र ...
आँसुओं में भीगकर,
मायुसी में कहीं खो जाये
गी  |

कुछ तो कर जा ऐसा,
की हमें फिरे से जीने की कोई वजह मिल जाये ,
दूर रहे सदा वो हमसे ....
पर फिर भी एक हसीन मुलाकात में ..

...खोया सब कुछ हमे फिर दे जा |

जरा सोच , जब दो मन एक ही आंगन में मिल जायेगे ...
तो दो दिल के बीच की सारी दीवारे भी मिट जायेगे ...
तब तन - बदन में आग लगेगी और हम भींगकर भी सावन में जल जायेगे |

Friday, July 13, 2012

होसला करने को , अब तो मन कहता है ...

जताए क्या जब , ख़ुशी है ही नहीं
बताये क्या जब , कुछ छुपा ही नहीं ..

होसला करने को , अब तो मन कहता है ,
पर हँसी जब लबों तक आती है ...
तो अनदेखा कर, हमसे दूर चली जाती है |

हथेली पर जो लिखा नाम होता ...
तो अपने आँसूओं से शुरुआत करते
पर रगों में बहते लहूँ से भी धोकर ...
भला तेरी यादों को कैसे मिटायें |

एक तारे की धुन से हम ,
बस अपनी तुलना करते है ,
सच तो ये है , जो संगीत था
वो कहीं खो गया है ....
ये तो दर्द की अनसुनी पुकारें है |


Monday, July 9, 2012

नज़रों से झलकता अश्क ना होगा ...

नफा नुकसान जो जिन्दगी में ना हो ,
तो क्या कोई रिश्ते पनप पायेगे ??
ना कोई नींद प्यारी होगी ...कभी 
और ये बाते भी अधूरी सी हो जाएगी |

क्या सहारा , क्या साथ देना ....
और जीना तो एक एहसान सा होगा |
जागते-जागते लोगो की नींद कटेगी ..
और दबी बात ना कहीं, ना सुनी जाएगी |

नज़रों से झलकता अश्क ना होगा ...
तब उम्र एक पहेले सी होगी ...
साँस लेने की फरियाद करना भी ,
एक  बेबसी ही होगी ...... |

Sunday, July 8, 2012

हर राह पर, कुछ कह रही ....

यादों की राख से , 
जाने क्या अब पाये |
बावरे थे , हम ...
जो जिन्दगी को ...
अब तक समझ ना |

हर राह पर, कुछ कह रही थी , 
जो रुके है , अब ...
तो सोचे किस दिशा में है |

ना सोचो दुखी है , अफसोस का सफ़र ..
अब .... ना चाहते  हुए  भी  ख़त्म हुआ |

अब समझ चुके है की कमी ,
बस जिन्दगी की साथी है ...
हर चाह के साथ नयी हो जाती है |

Saturday, July 7, 2012

अब तो दिल भी समझ गया है ....

आज फिर मिले थे , वो ...
पर उन्हें देख, कोई तकलीफ नहीं हुई |
लगता है , उनकी ख़ुशी इसमें है ...
की वो दूर रहे -- अब तो दिल भी समझ गया है |

तो क्या अंतर था ?? उनकी ख़ुशी और हमारी ख़ुशी में,
एक तरफ हम थे , खड़े - पत्ती की तरह कापते ...
दूसरी तरफ उनके पास पुरे परिवार का साथ था |

उन्हें भूलने और नयी जिन्दगी जीने की कोशिश से ..
उब चुके है , अब तो -- बेहतर ये होगा ...
अब, ये सोचे की वो हमसे अलग रहकर खुश है ....

जो लोग हमारे साथ थे , उन्होंने जानना चाहा |
क्या बीत रही है , हम पर ??
तो हमने कहा , अब जिन्दगी में जो बचा है ...
चलो वो बटोरते है ...तरक्की की सीडियाँ उन्हें मुबारक ,
हम तो अब खुश है , अपनी जिन्दगी के गड्डो को भरते |



Friday, July 6, 2012

ना उम्मीदी की रात छोड़ ...


बादलों में मोती खोजने चले है , 
ना उम्मीदी की रात छोड़ ...
हँसते- मुस्कुराते नयी सुबह को ,
तलाशते , थोड़ा घबराते चले है | 


शबद हो चुकी , जिन्दगी में ..
क्या बदलेगी ?? बस एक सवाल है ...
पर जब भी सोचते है ...एक डर सा लगता है ,
नया क्या खोजूं ?? जब कुछ नया नहीं है |


दुनिया के सन्नाटो से ,
छेड़ - छाड़ अब नहीं ...??
सिर्फ ख़ुशी की चाहत में ,
अनसुनी आवाज अब नहीं .. |


जो मिला था , क्या कम था ??
जो नयी शुरुआत चाहिए ....
जिन्दगी की गाड़ी छुट चुकी ,
उसे दौड़ कर पकड़ने से अच्छा है  ..
कुछ देर रुक, दूसरी ट्रेन का इंतजार कर ले |


Thursday, July 5, 2012

सम्भलने की शुरुआत हो गयी ....

दिल सम्भला नहीं ....
पर सम्भलने की शुरुआत हो गयी ,
जो पड़े अब, खुशियों को बटोरना  ...
तो दोनों हाथों को फैलाये, तैयार है हम  | 

हर खुशियों को जो मुसकुरा कर बांटे ..
हम तो बस उन्हीं से प्यार करते है ...
किसी सूरत का अब मोह कहा  ,
हम तो बस, अपनी हंसी का इंतजार करते है | 

किस्मत की कोई चाबी ना बनी ,
जो नयी उम्मीदे बाँट पाये,
पर दरवाजों तक पहुँच लोट आना ,
ना कभी आदत थी , ना ही फितरत है , हमारी ..
जो चाहत थी , मांग नहीं पाये तो क्या ??
कम से कम अब तो, उनकी खुशियों की दुआ करते है |




Tuesday, July 3, 2012

रोज-रोज असली नकली की तलाश ...


प्रेम नगर में बसने वालों ,
रोज-रोज असली नकली की तलाश 
और कब तक ??

हमें तो बस, एक नज़रों ने जो पढ़ा ,
अब हम तो , अनपढ़ से हो गये |

सफ़र में गुजरते रास्तों में खोकर ..
कभी भड़के, तो कभी ...
बुझी चिंगारी से हो गये |

पर फिर भी अपनी नज़रों को झुकाए ,
अब भी कहते है ..
ये क्या हुआ , क्यों हुआ, कैसे हुआ ??


Sunday, July 1, 2012

हमने तुमसे .... प्यार, क्यों किया ??


हज़ार राहें मिली चलने को ...
ना जाने लड़खडाते
क़दमों ने साथ, क्यों ना दिया?
जो थोड़ा गम था, 
तो थोड़ी ख़ुशी की जरूरत थी.
प्यार जो मुझसे किया ,
तो तक़दीर पर ऐतबार,
क्यों ना किया ??

कौन ना चाहे खुश रहना ..
जो अपनी ही खुशियाँ प्यारी थी ,
तो हमसे कह देते ,
की ये आज- कल का है प्यार  
हमसे अपनी मज़बूरी का इजहार 
क्यों ना किया ???

किस हक से माँगू तुम्हें  ...
जब हम एक तरफे प्यार के शिकार हुए ,
और जो तुमने सिर्फ खेल - खेला दिल का ,
तो ना लोटने की उम्मीद दे जाते .. |

यूँ तड़पता छोड़ गये हो ...
क्या यही गलती थी .. |
की हमने तुमसे ....
प्यार, क्यों किया ??