क्या कहूँ मेरे ख़्वाब,
तूं कितना हँसी हैं ?
हाँ, सच है की
तूं ज़रूरत ही हैं, मेरी
पर कोई जुर्ररत नहीं है |
आँखों में आज भी, वहीँ सपना हैं......
लेकिन हकीकत और हिम्मत जवाब दें चूँकि
मैं बुरे हालातों की बुराई क्यों करूँ ?
हर किसी ने मुझसे उम्मीद बना रखी होगी
और मैं हर बार उनकी उम्मीदों में
सही/गलत खोजते नज़र आती हूँ |
खाली हाथ दुआ को उठतें है और
वहीं आशीर्वाद के लिए भी झुकते है |
नयी शुरुआत, महसूस की जाती है....
सब कुछ नया हीं हैं जो पहुँच में आज नहीं
उसे पाने की चाह मारी ना हो,
इसलिए एक मौका दो खुद को |
-- सम्पा बरुआ
तूं कितना हँसी हैं ?
हाँ, सच है की
तूं ज़रूरत ही हैं, मेरी
पर कोई जुर्ररत नहीं है |
आँखों में आज भी, वहीँ सपना हैं......
लेकिन हकीकत और हिम्मत जवाब दें चूँकि
मैं बुरे हालातों की बुराई क्यों करूँ ?
हर किसी ने मुझसे उम्मीद बना रखी होगी
और मैं हर बार उनकी उम्मीदों में
सही/गलत खोजते नज़र आती हूँ |
खाली हाथ दुआ को उठतें है और
वहीं आशीर्वाद के लिए भी झुकते है |
नयी शुरुआत, महसूस की जाती है....
सब कुछ नया हीं हैं जो पहुँच में आज नहीं
उसे पाने की चाह मारी ना हो,
इसलिए एक मौका दो खुद को |
-- सम्पा बरुआ
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 23 नवम्बबर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी धन्यवाद |
Deleteबहुत खूब |
ReplyDeleteजी धन्यवाद |
ReplyDeleteachhi kavitayen likhti hain aap. badhia, shubhkamnayen
ReplyDeleteजी धन्यवाद |
Deleteसब कुछ नया हीं हैं जो पहुँच में आज नहीं
ReplyDeleteउसे पाने की चाह मारी ना हो,
इसलिए एक मौका दो खुद को |
...वाह...बहुत सार्थक चिंतन...एक प्रभावी प्रस्तुति..
सुन्दर प्रेरक रचना
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeletebhut hi badiya post likhi hai aapne. Ankit Badigar Ki Traf se Dhanyvad.
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