मुझे पराया कहकर देखो आसमां रो रहा है
पानी की बूंद में मुझे आभास कर छुं रहा है
मैं ना रूठी थी ऐ जमी उससे कभी लेकिन
आज आसमां अपना क्यों ! आपा खो रहा है ?
पानी की बूंद में मुझे आभास कर छुं रहा है
मैं ना रूठी थी ऐ जमी उससे कभी लेकिन
आज आसमां अपना क्यों ! आपा खो रहा है ?
बहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्द ।
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद आना हुआ ब्लॉग पर प्रणाम स्वीकार करें
संजय जी शुक्रिया |
Deleteसुंदर !
ReplyDeleteसुशील जी आभार |
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