Thursday, April 7, 2011

मुछे ये छाडू बेचा दो

एक ऑरत ने गाव के बाजार से छाडू खरीदा और रोज सुबह की तरह वो छाडू करने लगी उसने जब अपना आगन छाडू  कर लिया तो उसने एक सोंना का सिक्का पाया, दुसरे दिन भी यही हुआ और गाव मे ये बात फैल गयी की छाडू मे लक्ष्मी जी की कृपा है और लोग उसकी पूजा करने लगे  | ये बात जमीदार को पता चली और वो उस ऑरत के पास आया और कहा मुछे ये छाडू बेचा दो, वो ऑरत बोली मे नहीं दे सकती इसपे वो गुस्सा होगया और कहा जितने पैसे चाहिए लेलो पर मुछे छाडू चाहिए " ऑरत डर गयी और उसने छाडू बेचा दी ", जमीदार खुश हुआ और दुसरे दिन सुबह अपना घर छाडू करने लगा पूरा घर छाडू करने पर भी उसे कुछ नहीं मिला " इसलिए कहते दिखावे पे मतजाओ अकाल लगाओ " |

4 comments:

  1. अच्‍छी सीख देती लघुकथा।
    पर वर्तनी की त्रुटि से मजा किरकिरा हो गया।
    सुधार कर लें।
    छाडू नहीं झाडू
    अकाल नहीं अकल

    ReplyDelete
  2. वक्‍त निकालकर यहां भी आना

    http://atulshrivastavaa.blogspot.com/

    ReplyDelete