Sunday, November 22, 2015

' एक मौका दो खुद को '

क्या कहूँ मेरे ख़्वाब, 
तूं कितना हँसी हैं ?
हाँ, सच है की 
तूं ज़रूरत ही हैं, मेरी 
पर कोई जुर्ररत नहीं है |

आँखों में आज भी, वहीँ सपना हैं......
लेकिन हकीकत और हिम्मत जवाब दें चूँकि
मैं बुरे हालातों की बुराई क्यों करूँ ?
हर किसी ने मुझसे उम्मीद बना रखी होगी
और मैं हर बार उनकी उम्मीदों में 
सही/गलत खोजते नज़र आती हूँ |


खाली हाथ दुआ को उठतें है और 
वहीं आशीर्वाद के लिए भी झुकते है |
नयी शुरुआत, महसूस की जाती है....
सब कुछ नया हीं हैं जो पहुँच में आज नहीं 
उसे पाने की चाह मारी ना हो, 
इसलिए एक मौका दो खुद को |


-- सम्पा बरुआ

Monday, November 16, 2015

' मसीहा ऐ दर्द का '

वो कह गए की मुस्कराहट, दवा हैं,
हम तो आज भी महरूम " मोहब्बत से " |
उन खैराती खुशियों से, मैं अपना घर, कैसे सजाऊं ?
जिनकी क़ीमत मुझसे कभी ना, चुकायी ना जाएं...
हमेंशा दिल ने मज़बूर किया की उम्मीद करूँ,
लोग मतलबी तो हरगिज होंगे |
पर किसी के मतलब में मेरा,
अपना मतलब भी नज़र आएं कभी |
मुझे जो दर्द तलाशते, मिला जब कभी ..
बस जुंबा पर ये बात थी,मसीहा ऐ दर्द का
कितना खूबसुरत होगा, वफ़ा की तलब में |
- सम्पा बरुआ

Saturday, November 14, 2015

जनाब , लेट -इट- गो !!!

अर्ज़ियाँ मोहब्बत की ना जाने,
कहाँ गुम हो गयी ? लेकिन
सभी ने तो उनमें फ़रेब देखा हैं |
मैंने तो ये भी वक़्त देखा है, 
गुलामों और मुजलीमों का भी
आता वो वक़्त देखा हैं,
ना फ़किरिय्त चुभती हैं,
ना अपने कियें पर अब
कोई अफ़सोस होता है |
अच्छे वो आज भी लगते हैं
पर अच्छा , अब उनमें कुछ नहीं लगता |
यकीनन उनमें अच्छाई आज भी होगी,
पर जो नहीं दिखता कहाँ से लाओगे ??
बात में बिखरना आप को भी आता हैं,
लेकिन बातों से बाँधे रखना अब तो मुश्किल हैं |
क्या करूँ ? लेट -इट- गो !!! पाना, आना, जाना
सब बातें है, जनाब हम दोनों हकीकतों के आदि है |

-- सम्पा बरुआ

Thursday, November 12, 2015

' बुराई की राहें खुली हर जगह '

मन चाहीं ख़ुशी किसे मिलती हैं ?
जो आसानी से मिल जाये उसे
कोई भी लम्बे समय तक चाह नहीं सकता,

इसलिए चाहतों की परवाह ना करो,
परवाह करो की लोग तुम्हें चाहे ?
ये चाहत की बुँदे वो बुँदे हैं
जो दुःख के काले बादलो में भी
शबनम सी चमकती है |

अच्छाई ने अच्छा बनाया,
बुराई की राहें खुली हर जगह
सभी ने प्यार से हीं डुबाया |

आज जो शब्द काम ना आते
बद्द्दुओं के लिए... तो हम
तुम्हारे आबाद रहने की दुआ करते हैं.....
" जो मिला शब्क था,
अब दुबारा वैसी भूल ना होगी " |

- सम्पा बरुआ


Monday, November 9, 2015

इन खून के थक्को से...

बेइरादा कुछ खताएं, हमसे हो गयी
तो ज़िन्दगी ने भी अब तक साजिश हीं किया
राह में पत्थर, मेरी हरदम दिए
ना हँस सकें खुलकर, ना रो सकें टूटकर |
हम ऐसे ना थे की हमने खुद को मौके ना दिए
कई मौसम दिए तो ज़ख्म और ताज़ा हुए
नए कश्मकश दिया, कई अजनबी दिए,
पर मरहम लगाने का मौके ना दिए |
अगर बेबसी रुला दें मुझें
तो अब आँसू ना बहेंगे ....
मेरा वो वक़्त थम चूका,
इन खून के थक्को से |

-- सम्पा बरुआ 

Sunday, November 8, 2015

दवा तेरी खुद को मिटा चुकीं है

मुझे पराया कहकर देखो आसमां रो रहा है
पानी की बूंद में मुझे आभास कर छुं रहा है
मैं ना रूठी थी ऐ जमी उससे कभी लेकिन
आज आसमां अपना क्यों ! आपा खो रहा है ?
अगर तकलीफ़ में याद रखकर ख़ुशी में भूलजान
आदत है तेरी तो मरीज क्या तारीफा ? तेरी तबियत की |
दवा तेरी खुद को मिटा चुकीं है, उसके दर्द का अहसास
तुझे अब जाकर हो रहा है | बुलालेगी वो तेरे दियें ज़ख्म |
जब तूं आज कह रहा है , किसी के दूर जाने से दिल रो रहा है......
-- सम्पा बरुआ

अपनी हुकुम्म्त में ....

जो मिला कम है , 
ज़्यादा ख़ुशी में भी 
होती ये आँखे नम है | 

हम जो मैं में नहीं रहते 
तो आप से होशियारी में 
बहुत ही कम है

काम हमारा भी लोगों को 
अच्छा लगता है, इन्हीं 
बचकानी हरकतों में 
कहीं छुपें, हम है |
दुनियाँ देखनेवाले कई 
आँखे देख रखी है, मैंने |
पर उन्हें क्या दिखाई दिया, 
जब उनके अपने हीं कई गम है..

मुझे कल्पनाएँ, हकीकतों से 
सुन्दर लगती है 
' मैं काल्पनिक हूँ ' 
पर अपनी हुकुम्म्त में , हम है |
क्या कहूँ तुम राजा हो, हम रंक है....
पर मुझे वजहों ने मज़बूर किया, ये कहने को
मेरी उडान तुम्हारी पहुँच में नहीं ...
फिर भी कहूँगी,
तुम-तुम हो और हम-हम है |
-- सम्पा बरुआ |