Monday, November 16, 2015

' मसीहा ऐ दर्द का '

वो कह गए की मुस्कराहट, दवा हैं,
हम तो आज भी महरूम " मोहब्बत से " |
उन खैराती खुशियों से, मैं अपना घर, कैसे सजाऊं ?
जिनकी क़ीमत मुझसे कभी ना, चुकायी ना जाएं...
हमेंशा दिल ने मज़बूर किया की उम्मीद करूँ,
लोग मतलबी तो हरगिज होंगे |
पर किसी के मतलब में मेरा,
अपना मतलब भी नज़र आएं कभी |
मुझे जो दर्द तलाशते, मिला जब कभी ..
बस जुंबा पर ये बात थी,मसीहा ऐ दर्द का
कितना खूबसुरत होगा, वफ़ा की तलब में |
- सम्पा बरुआ

8 comments:

  1. सुन्दर रचना,

    आप सभी का स्वागत है मेरे इस #ब्लॉग #हिन्दी #कविता #मंच के नये #पोस्ट #मिट्टीकेदिये पर | ब्लॉग पर आये और अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें |

    http://hindikavitamanch.blogspot.in/2015/11/mitti-ke-diye.html

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (18-11-2015) को "ज़िंदगी है रक़ीब सी गुज़री" (चर्चा-अंक 2164) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. गहन अहसास,,,बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...

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