Wednesday, November 30, 2011

इस बेदर्द ज़माने में जीने का सलीका नहीं आता....

ना हम मजबूर है , ना हमारी कोई मज़बूरी है |
बस हमे तो ...इस बेदर्द ज़माने में जीने का सलीका नहीं आता ||

खोल के रख देते है , दिल अपना दूजो के पास |
हमे तो अपना गहरा जख्म भी छुपाना नहीं आता ||

फिर भी लोग कहते है , की तुम्हारे पास दिल नहीं है |
अब किसे कहे की दिल तो दिया है भगवान ने ||
बस कच्चे है हम, दिल के जस्बात दिखाते नहीं है  |||

जो रही तक़दीर , तो दुनिया के हिसाब से ढल जायेगे |
हम ना रहेगे अब जैसे, चलो दुसरो की ख़ुशी के लिए ही बदल जायेगे ||
 

4 comments:

  1. जो खुद को बदल लिया तो फिर क्‍या जीना.....

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  2. chehre par chehraa chadhaanaa fitrat logon kee
    dilwaale to dhoondhne se bhee nahee milte hein

    likhte raho khoobsoorat andaz,

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