Thursday, December 1, 2011

पता नहीं अब इन लहरों को क्या हो गया है...

जब खुशिया थी पास मेरे , हर दिन वो लहरों की तरह आती थी |
मैं उसमे डूबती थी और उभरती थी , पर पता नहीं अब इन लहरों को क्या हो गया है ||

अब भी दूर से आती दिखती है पर जब भी दोड़ी पास जाती हु , प्यासी रह जाती हु |
मेरी प्याल भी अधूरी सी हो गयी , छम - छमती है पर उसमे गूंज नहीं है ||

क्या मेरी मन की प्यास, क्या कोई अब फिर बूछायेगा या मेरा ये दिल तड़पते ही रह जायेगा |
मैं सच कहू अब मेरी तड़प भी मेरा साथ छोड़ जा रही और ये सच है, एक दिन मैं बिन बताये कही खोसी जाउगी ||

पर इस गुमनामी में भी , मेरे हालात नहीं बदलेगे |
और मैं जल बिन मछली की तरह तड़पती रह जाउगी | |

2 comments:

  1. गहरे अहसास।
    सुंदर प्रस्‍तुति।

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