मन चाहीं ख़ुशी किसे मिलती हैं ?
जो आसानी से मिल जाये उसे
कोई भी लम्बे समय तक चाह नहीं सकता,
इसलिए चाहतों की परवाह ना करो,
परवाह करो की लोग तुम्हें चाहे ?
ये चाहत की बुँदे वो बुँदे हैं
जो दुःख के काले बादलो में भी
शबनम सी चमकती है |
अच्छाई ने अच्छा बनाया,
बुराई की राहें खुली हर जगह
सभी ने प्यार से हीं डुबाया |
आज जो शब्द काम ना आते
बद्द्दुओं के लिए... तो हम
तुम्हारे आबाद रहने की दुआ करते हैं.....
" जो मिला शब्क था,
अब दुबारा वैसी भूल ना होगी " |
- सम्पा बरुआ
बहुत खूब |
ReplyDeleteजी शुक्रिया |
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (14-11-2015) को "पञ्च दिवसीय पर्व समूह दीपावली व उसका महत्त्व" (चर्चा अंक-2160) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जी शुक्रिया |
Deleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteजी शुक्रिया |
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