अर्ज़ियाँ मोहब्बत की ना जाने,
कहाँ गुम हो गयी ? लेकिन
सभी ने तो उनमें फ़रेब देखा हैं |
कहाँ गुम हो गयी ? लेकिन
सभी ने तो उनमें फ़रेब देखा हैं |
मैंने तो ये भी वक़्त देखा है,
गुलामों और मुजलीमों का भी
आता वो वक़्त देखा हैं,
ना फ़किरिय्त चुभती हैं,
ना अपने कियें पर अब
कोई अफ़सोस होता है |
गुलामों और मुजलीमों का भी
आता वो वक़्त देखा हैं,
ना फ़किरिय्त चुभती हैं,
ना अपने कियें पर अब
कोई अफ़सोस होता है |
अच्छे वो आज भी लगते हैं
पर अच्छा , अब उनमें कुछ नहीं लगता |
यकीनन उनमें अच्छाई आज भी होगी,
पर अच्छा , अब उनमें कुछ नहीं लगता |
यकीनन उनमें अच्छाई आज भी होगी,
पर जो नहीं दिखता कहाँ से लाओगे ??
बात में बिखरना आप को भी आता हैं,
लेकिन बातों से बाँधे रखना अब तो मुश्किल हैं |
बात में बिखरना आप को भी आता हैं,
लेकिन बातों से बाँधे रखना अब तो मुश्किल हैं |
क्या करूँ ? लेट -इट- गो !!! पाना, आना, जाना
सब बातें है, जनाब हम दोनों हकीकतों के आदि है |
सब बातें है, जनाब हम दोनों हकीकतों के आदि है |
-- सम्पा बरुआ
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (15-11-2015) को "बच्चे सभ्यता के शिक्षक होते हैं" (चर्चा अंक-2161) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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बालदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जी धन्यवाद |
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteजी आभार |
Deleteबढ़िया ।
ReplyDeleteजी शुक्रिया |
Deleteबहुत ख़ूबसूरत और सटीक अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteजी शुक्रिया |
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