Sunday, November 8, 2015

दवा तेरी खुद को मिटा चुकीं है

मुझे पराया कहकर देखो आसमां रो रहा है
पानी की बूंद में मुझे आभास कर छुं रहा है
मैं ना रूठी थी ऐ जमी उससे कभी लेकिन
आज आसमां अपना क्यों ! आपा खो रहा है ?
अगर तकलीफ़ में याद रखकर ख़ुशी में भूलजान
आदत है तेरी तो मरीज क्या तारीफा ? तेरी तबियत की |
दवा तेरी खुद को मिटा चुकीं है, उसके दर्द का अहसास
तुझे अब जाकर हो रहा है | बुलालेगी वो तेरे दियें ज़ख्म |
जब तूं आज कह रहा है , किसी के दूर जाने से दिल रो रहा है......
-- सम्पा बरुआ

4 comments:

  1. बहुत ह‍ी सुन्‍दर भावमय करते शब्‍द ।
    बहुत दिनों बाद आना हुआ ब्लॉग पर प्रणाम स्वीकार करें

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    1. संजय जी शुक्रिया |

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