प्रेम नगर में बसने वालों ,
रोज-रोज असली नकली की तलाश
और कब तक ??
हमें तो बस, एक नज़रों ने जो पढ़ा ,
अब हम तो , अनपढ़ से हो गये |
सफ़र में गुजरते रास्तों में खोकर ..
कभी भड़के, तो कभी ...
बुझी चिंगारी से हो गये |
पर फिर भी अपनी नज़रों को झुकाए ,
अब भी कहते है ..
ये क्या हुआ , क्यों हुआ, कैसे हुआ ??
हमें तो बस, एक नज़रों ने जो पढ़ा ,
ReplyDeleteअब हम तो , अनपढ़ से हो गये |
बढिया है
प्रेम नगर में बसने वालों ,
ReplyDeleteरोज-रोज असली नकली की तलाश
और कब तक ??
वाह बहुत सुन्दर भावो को संजोया है।
बहुत खूब..
ReplyDeleteभावभीनी रचना...
सुन्दर
:-)
आप लोगो का बहुत - बहुत आभार .....
ReplyDeleteSUNDER BHAWO SE OT PROT KHOOBSOORAT RACHNA.
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