हज़ार राहें मिली चलने को ...
ना जाने लड़खडाते
क़दमों ने साथ, क्यों ना दिया?
जो थोड़ा गम था,
तो थोड़ी ख़ुशी की जरूरत थी.
प्यार जो मुझसे किया ,
तो तक़दीर पर ऐतबार,
क्यों ना किया ??
कौन ना चाहे खुश रहना ..
जो अपनी ही खुशियाँ प्यारी थी ,
तो हमसे कह देते ,
की ये आज- कल का है प्यार
हमसे अपनी मज़बूरी का इजहार
क्यों ना किया ???
किस हक से माँगू तुम्हें ...
जब हम एक तरफे प्यार के शिकार हुए ,
और जो तुमने सिर्फ खेल - खेला दिल का ,
तो ना लोटने की उम्मीद दे जाते .. |
यूँ तड़पता छोड़ गये हो ...
क्या यही गलती थी .. |
की हमने तुमसे ....
प्यार, क्यों किया ??
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल के चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आकर चर्चामंच की शोभा बढायें
ReplyDeleteधन्यवाद जी
Deleteso poignant and sad.. !!
ReplyDeletei am happy :)
Deleteउत्कृष्ट भाव -
ReplyDeleteमिली हजारों राह |
कम नहीं थी चाह-
पर आप्सन बहुत थे -
क्या करते ?
भटक गए -
भूलभुलैया में अटक गए |
धन्यवाद जी:)
Deleteधन्यवाद बहुत - बहुत आभार .....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर......
ReplyDeleteप्यारी रचना...
अनु
सुंदर रचना
ReplyDeleteप्यार में अक्सर ऐसी गलतियों की सजा मिल जाती है जो होती नहीं हैं ...
ReplyDeleteउदास मन की रचना ...
किस हक से माँगू तुम्हें ...
ReplyDeleteजब हम एक तरफे प्यार के शिकार हुए ,
और जो तुमने सिर्फ खेल - खेला दिल का ,
तो ना लोटने की उम्मीद दे जाते .. |
यूँ तड़पता छोड़ गये हो ...
क्या यही गलती थी .. |
की हमने तुमसे ....
प्यार, क्यों किया ??
bahut hi badhiya rachana hai
i like ur kavita...<3
बहुत सुंदर रचना।
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