Tuesday, July 3, 2012

रोज-रोज असली नकली की तलाश ...


प्रेम नगर में बसने वालों ,
रोज-रोज असली नकली की तलाश 
और कब तक ??

हमें तो बस, एक नज़रों ने जो पढ़ा ,
अब हम तो , अनपढ़ से हो गये |

सफ़र में गुजरते रास्तों में खोकर ..
कभी भड़के, तो कभी ...
बुझी चिंगारी से हो गये |

पर फिर भी अपनी नज़रों को झुकाए ,
अब भी कहते है ..
ये क्या हुआ , क्यों हुआ, कैसे हुआ ??


5 comments:

  1. हमें तो बस, एक नज़रों ने जो पढ़ा ,
    अब हम तो , अनपढ़ से हो गये |


    बढिया है

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  2. प्रेम नगर में बसने वालों ,
    रोज-रोज असली नकली की तलाश
    और कब तक ??

    वाह बहुत सुन्दर भावो को संजोया है।

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  3. बहुत खूब..
    भावभीनी रचना...
    सुन्दर
    :-)

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  4. आप लोगो का बहुत - बहुत आभार .....

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  5. SUNDER BHAWO SE OT PROT KHOOBSOORAT RACHNA.

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