Saturday, July 7, 2012

अब तो दिल भी समझ गया है ....

आज फिर मिले थे , वो ...
पर उन्हें देख, कोई तकलीफ नहीं हुई |
लगता है , उनकी ख़ुशी इसमें है ...
की वो दूर रहे -- अब तो दिल भी समझ गया है |

तो क्या अंतर था ?? उनकी ख़ुशी और हमारी ख़ुशी में,
एक तरफ हम थे , खड़े - पत्ती की तरह कापते ...
दूसरी तरफ उनके पास पुरे परिवार का साथ था |

उन्हें भूलने और नयी जिन्दगी जीने की कोशिश से ..
उब चुके है , अब तो -- बेहतर ये होगा ...
अब, ये सोचे की वो हमसे अलग रहकर खुश है ....

जो लोग हमारे साथ थे , उन्होंने जानना चाहा |
क्या बीत रही है , हम पर ??
तो हमने कहा , अब जिन्दगी में जो बचा है ...
चलो वो बटोरते है ...तरक्की की सीडियाँ उन्हें मुबारक ,
हम तो अब खुश है , अपनी जिन्दगी के गड्डो को भरते |



1 comment:

  1. भावविभोर करती दर्दभरी रचना...
    :-)

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