बहुत अच्छा.. होता ,
जो रात का इंतजार ना होता ..
तो, जो जलन - धुप ने दी है ..
उसे ही जीवन बना लेते |
यूँ तो ये तपिश ,
अपनी है, जो किसी
पराये ने दे दी है ....
सिर्फ शब्दों का खेल है , ये ..
क्योंकि प्यार का नाम लेना ,
अब अच्छा नहीं लगता |
ना कोई मोल है, इन बातों का ...
जो किसी बढ चले क़दमों को ..
बंद ना पाये ,
फीके पकवान से ये शब्द ....
पर हमने तो ढूंड के पाए है |
आज जो किसी को रश ना आये, तो क्या ??
कभी तो ये, प्रतिदिन उनकी भोजन का अंग होता था |
यूँ तो ये तपिश ,
ReplyDeleteअपनी है, जो किसी
पराये ने दे दी है ....
सिर्फ शब्दों का खेल है , ये ..
क्योंकि प्यार का नाम लेना ,
अब अच्छा नहीं लगता |
बहुत सुंदर, अच्छी रचना
ati Sunder
ReplyDeleteधन्यवाद आभार ...
ReplyDeleteछीके अब मुंह खोल के, कै मीठे-पकवान ।
ReplyDeleteजगह-जगह खाता रहा, कम्बल ओढ़ उतान।
कम्बल ओढ़ उतान, तपन की आदत डाले ।
रहा बहुत मस्तान, आज मधुमेह सँभाले ।
उच्च दाब पकवान, करे अब poit फ़ीके ।
बदल गया इंसान, खोल में बैठा छींके ।।
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dineshkidillagi.blogspot.in
वाह..
ReplyDeleteयूँ तो ये तपिश ,
अपनी है, जो किसी
पराये ने दे दी है ....
सिर्फ शब्दों का खेल है , ये ..
क्योंकि प्यार का नाम लेना ,
अब अच्छा नहीं लगता |
बहुत सुन्दर!!!!
अनु
बहुत उम्दा अभिव्यक्ति,,,सुंदर प्रस्तुत रचना,,,,
ReplyDeleteपोस्ट पर आइये स्वागत है,
MY RECENT POST....काव्यान्जलि...:चाय
बहुत सुन्दर ...
ReplyDeleteआप सभी का बहुत बहुत आभार ...
ReplyDeleteवाह..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....
वाह अति सुन्दर
ReplyDeletepahli baar aapke blog par aai hu.panktiyan sach me acchi lagi
ReplyDeleteधन्यवाद बहुत - बहुत आभार .....
ReplyDeleteसुन्दर रचना..
ReplyDelete:-)
:)
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