वो तो बेखबर हैं, की उनका ख्याल
अब तक हममें ताज़ा है |
लेकिन इस बेबसी में,
पुरानें दिनों जैसी ताजगी " अब कहाँ " ||
हम तो मशरुफियत में भी
तन्हाई का..शमा जलाएं फ़िरते है,
लेकिन इंतजार की डोर थामतें हाथ,
अब कहीं नज़र नहीं आतें |
अब तो हमें नजरअंदाज होना भी कबूल है,
जो उनकी ये नज़र अब से फितरती हो |
सोच रहा हूँ, बहुत कुछ कह चूका...
लेकिन इसें भी अनसुना हीं कर दों,
अगर इसमें लिखा
" कुछ भी सिर्फ और सिर्फ, मेरे मतलब का हों " |
अब तक हममें ताज़ा है |
लेकिन इस बेबसी में,
पुरानें दिनों जैसी ताजगी " अब कहाँ " ||
हम तो मशरुफियत में भी
तन्हाई का..शमा जलाएं फ़िरते है,
लेकिन इंतजार की डोर थामतें हाथ,
अब कहीं नज़र नहीं आतें |
अब तो हमें नजरअंदाज होना भी कबूल है,
जो उनकी ये नज़र अब से फितरती हो |
सोच रहा हूँ, बहुत कुछ कह चूका...
लेकिन इसें भी अनसुना हीं कर दों,
अगर इसमें लिखा
" कुछ भी सिर्फ और सिर्फ, मेरे मतलब का हों " |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
--
आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (13-06-2014) को "थोड़ी तो रौनक़ आए" (चर्चा मंच-1642) पर भी होगी!
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
धन्यवाद रूपचन्द्र शास्त्री मयंक ज़ी |
Delete. बहुत ही उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ... आभार ।
ReplyDeleteधन्यवाद संजय भास्कर ज़ी |
DeleteBehtareen.!
ReplyDeleteधन्यवाद Kumar Shiva ज़ी
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