कैसे बयां करूँ तुझको, मेरी ये बेताबी ??
जो ना करना चाहों मेरी " सादगी " पर यकीं |
नसीब को तो तख्ती हीं माना है, अब तक...
जिसमें कोरा कागज़ लगा है, कुछ लिखा नहीं |
मेरा वो खुबसूरत कलम कहीं गुम है,
जिससे तुमनें अपनी मनमानी कर, सरहदों की तरह,
हमारे बीच टेड़ी-मेडी काली लकीरें खीच दी है ..
और सक्त हिदायत भी दें दी की तुम्हारा आना, माना है |
लेकिन शायद, मेरा वो सामान आज भी तुम्हारे पास है |
ये भी तो सच हैं की वो मेरा कब था, तुम्हारें आने पर हीं आया था |
तब उसके तिलिस्म में मुझकों अपने नसीब से ज्यादा यकीं था |
अब उसका तिलिस्म कहीं गुम है, शायद उसकी रूहानी ताकत ..
जो मुझसें हर ऱोज राफ्ता कर फुल बनकर मेहक देती थी,
आज बीतते दिनों की सोबत में नासूर बनकर चुभने लगी है |
फिर भी अमिट हो चुकीं है, ये मेरे कोमल मन की प्यास...
जो ना करना चाहों मेरी " सादगी " पर यकीं |
नसीब को तो तख्ती हीं माना है, अब तक...
जिसमें कोरा कागज़ लगा है, कुछ लिखा नहीं |
मेरा वो खुबसूरत कलम कहीं गुम है,
जिससे तुमनें अपनी मनमानी कर, सरहदों की तरह,
हमारे बीच टेड़ी-मेडी काली लकीरें खीच दी है ..
और सक्त हिदायत भी दें दी की तुम्हारा आना, माना है |
लेकिन शायद, मेरा वो सामान आज भी तुम्हारे पास है |
ये भी तो सच हैं की वो मेरा कब था, तुम्हारें आने पर हीं आया था |
तब उसके तिलिस्म में मुझकों अपने नसीब से ज्यादा यकीं था |
अब उसका तिलिस्म कहीं गुम है, शायद उसकी रूहानी ताकत ..
जो मुझसें हर ऱोज राफ्ता कर फुल बनकर मेहक देती थी,
आज बीतते दिनों की सोबत में नासूर बनकर चुभने लगी है |
फिर भी अमिट हो चुकीं है, ये मेरे कोमल मन की प्यास...
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteधन्यवाद Kailash Sharma ज़ी |
Deleteधन्यवाद रूपचन्द्र शास्त्री मयंक ज़ी |
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