Friday, June 13, 2014

अंतिम पुकार

जिन्दगी ज़ी रहीं हूँ, कैसे जिया है " अब तक " |
लफ्जों ने बेवफाई ना की है 
पर क्या कहूँ, तेरे बिन अब तक ??
नम आँखें ना जाने कब से सूख चुकीं है...
लेकिन तेरे इंतजार में बिछी है, तब से अब तक |

जीनें की वजह तलाशती हूँ, 
सांसे भारी लगने लगी है...
तेरी यादों के सहारें रहकर भी 
तिनके की तरह बह-रहीं हूँ, तब से अब तक |


वो भूलें ना भुलाएँ जातें है, 
कटती रातें नम आँखों से उन्हें ढूंड लाती है |
तन्हाई भी ताजगी भर जाती है, 
चलों सपनों में तुमसे मुलाकात हो जाती है |

गलत की लत मुझें है, 

जो गलत हुआ उसकी वजह भी, मेरी |
पर जो रुक चूका है, उसे रफ़्तार चाहियें ?? 

सपनें आज भी देखें जा सकतें है |
बस इन डूबती आँखों की गहराईयों में झाकों, 

कहीं मैं इनमें डूबती ना जाऊं ...??

आज तुम्हारी आवाज़ जो छानती फिरती हूँ,
कभी ऐसा ना हो की तन्हाईयों की गर्त में जो धस जाऊं,
चाह कर भी तुम्हें मैं सुन ना पाऊं,
शायद प्यार ना होगा उस अंतिम पुकार में ,
पर अफ़सोस की वजह तो बन हीं जाऊंगी, तेरे प्यार में ??

9 comments:

  1. प्रेम का रूप यह भी ... गहरे भाव

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    1. आभार डॉ. मोनिका शर्मा ज़ी |

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  2. आभार रूपचन्द्र शास्त्री मयंक ज़ी |

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  3. सुंदर रचना

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  4. विरह प्रेम की परीक्षा है।

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    1. धन्यवाद आशा जोगळेकर ज़ी |

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  5. सुन्दर रचना...

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