Wednesday, June 4, 2014

पसीनें की हर छिट पर ..

मैं बेख़बर नहीं खुद से , 
मुझें आज उसकी पहचान है
बडीशेप की बड़ा बटवा मेरा नहीं,
उनका है जो बोझ उठा रहें है |

हम तो मस्तमोला है, 
चिल्लर इकठठा कर रहें, 
पसीनें की हर छिट पर ..

बहुत कुछ उन्हें पता है 
लेकिन मुझें तो सिर्फ पता है, पैसे का बोझ |
आज उनकों खुश देखकर ख़ुशी होती है 
सफलता के अलग - अलग रंग ?? शायद |

कुछ फीकापन हममें है
सफल तो हर पल है लेकिन सफलता से है दूर , 
तो आज भी कुछ बचपन की हीं तरह,
 चवन्नी तलाशते है, वो मिलती है ??

सबके लिए कुछ है खाली हाथ, 
भरी भीड़ में हम क्या नहीं बैचे ??
बैचकर कोई ख़ुशी हो वो व्यापार मिल जायें, 
आपका बोझ, आप समालों |
हम तो फ़िजूल में आपको बड़ा कहते है, 
बड़ी तो मेरी छोटी जरूरतें है ....

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