सुनकर बड़ा अच्छा लगता था,
की दो बदन एक जान है, हम |
ये बात मुझें आज भी सुननी है
कहा करते थे ..तुम्हारा हक है -
उस हक़ को हक्कित की बलि ना दों |
अब भी मेरे ये कान
तुम्हारी आवाज़ खोजते है...
यही सुनने की चाह में,
यूँ तो दिल थक चूका है ...|
उन जवाबों के इंतजार में,
फिर भी आश नहीं टूटी है |
इंतजार करता - रहना भी कुबूल है
पर उन्हें भुलाना मुश्किल है, अपने वजूद से |
उनकी याद बिन बुलाये आ जाती है ,
लेकिन वो बुलाने के बाद भी नहीं आते |
हम - खुद को उम्मीद देते है,
( मैं और मेरा पूर्वाग्रह से ग्रसित मन )
शायद वो हारें अपनी जंग,
मुझें भूल जाने की ....
उनकी इन कोशिशों से भी दर्द होता है |
की दो बदन एक जान है, हम |
ये बात मुझें आज भी सुननी है
कहा करते थे ..तुम्हारा हक है -
उस हक़ को हक्कित की बलि ना दों |
अब भी मेरे ये कान
तुम्हारी आवाज़ खोजते है...
यही सुनने की चाह में,
यूँ तो दिल थक चूका है ...|
उन जवाबों के इंतजार में,
फिर भी आश नहीं टूटी है |
इंतजार करता - रहना भी कुबूल है
पर उन्हें भुलाना मुश्किल है, अपने वजूद से |
उनकी याद बिन बुलाये आ जाती है ,
लेकिन वो बुलाने के बाद भी नहीं आते |
हम - खुद को उम्मीद देते है,
( मैं और मेरा पूर्वाग्रह से ग्रसित मन )
शायद वो हारें अपनी जंग,
मुझें भूल जाने की ....
उनकी इन कोशिशों से भी दर्द होता है |
शायद वो हारें अपनी जंग,
ReplyDeleteमुझें भूल जाने की ....
उनकी इन कोशिशों से भी दर्द होता है |
...वाह...बहुत भावपूर्ण रचना...
बहुत सुन्दर भाव पूर्ण अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteनौ रसों की जिंदगी !
धन्यवाद |
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (23-06-2014) को "जिन्दगी तेरी फिजूलखर्ची" (चर्चा मंच 1652) पर भी होगी!
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteशायद वो हारें अपनी जंग,
ReplyDeleteमुझें भूल जाने की ....
उनकी इन कोशिशों से भी दर्द होता है |...sundar panktiyan !
मुझें भूल जाने की ....
ReplyDeleteउनकी इन कोशिशों से भी दर्द होता है |
...वाह...बहुत भावपूर्ण