तुम्हें दें उस मोहोब्बत की कसम,
जिसमें तुम थे, हम थे
और थी ये दुनिया " चुप " |
ओ सनम यूँ तो आज भी
तेरी हर यादें बोलती है,
पर इस बेरहम दुनिया से
जो उन्हें छुपाना पड़ता है |
तो तन्हाई में, उन्हें
अपना हाले-दिल बताना ...
मुश्किल-ब-मुश्किल
होता चला जाता है |
यूँ रो-कर कभी-भी अपनी बात
पूरी की नहीं जा सकती,
इसलियें मासूमियत को दफन कर
मुस्कुराना पड़ता है |
यूँ तो खफा हूँ, तेरे बेरुखी पर,
फिर भी खोफ ना खाना...
अपनी अनजानी भूल के लिए,
मैं आज कुछ यूँ शर्मिंदा हूँ !!
पता नहीं, तुझसे बिछड़कर
अब तक कैसे जिन्दा हूँ ??
मिलकर बिछड़ने का दस्तूर पुराना है,
ना तुम अपनी खूबियों पर मगरूर हो |
तो क्या कोई मेरा ऐब, इसकी वजह है ??
जो हो सच कह दो,
अब तो इन्तहा हो रहीं है |
तुम्हारी भी तन्हाई मुझें ...
तुम तक आने को मजबूर करती है |
आखिर तुम तन्हा क्यों हो ??
जिसमें तुम थे, हम थे
और थी ये दुनिया " चुप " |
ओ सनम यूँ तो आज भी
तेरी हर यादें बोलती है,
पर इस बेरहम दुनिया से
जो उन्हें छुपाना पड़ता है |
तो तन्हाई में, उन्हें
अपना हाले-दिल बताना ...
मुश्किल-ब-मुश्किल
होता चला जाता है |
यूँ रो-कर कभी-भी अपनी बात
पूरी की नहीं जा सकती,
इसलियें मासूमियत को दफन कर
मुस्कुराना पड़ता है |
यूँ तो खफा हूँ, तेरे बेरुखी पर,
फिर भी खोफ ना खाना...
अपनी अनजानी भूल के लिए,
मैं आज कुछ यूँ शर्मिंदा हूँ !!
पता नहीं, तुझसे बिछड़कर
अब तक कैसे जिन्दा हूँ ??
मिलकर बिछड़ने का दस्तूर पुराना है,
ना तुम अपनी खूबियों पर मगरूर हो |
तो क्या कोई मेरा ऐब, इसकी वजह है ??
जो हो सच कह दो,
अब तो इन्तहा हो रहीं है |
तुम्हारी भी तन्हाई मुझें ...
तुम तक आने को मजबूर करती है |
आखिर तुम तन्हा क्यों हो ??
विरह से ओत प्रोत होने के साथ ही मार्मिकता भी । बहुत सुन्दर रचना आभार के साथ बधाई ।
ReplyDeleteधन्यवाद Naveen Mani Tripathi ज़ी |
Deleteधन्यवाद रूपचन्द्र शास्त्री मयंक ज़ी |
ReplyDeleteसुंदर
ReplyDeleteOnkar ज़ी धन्यवाद |
Deleteया इलाही ये माज़रा क्या है...
ReplyDeleteधन्यवाद Vaanbhatt ज़ी |
Deleteपता नहीं, तुझसे बिछड़कर
ReplyDeleteअब तक कैसे जिन्दा हूँ ??
बेहतर रचना
धन्यवाद dr.mahendrag ज़ी |
Deleteसुन्दर लिखा है..
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