Thursday, June 12, 2014

ये अदा भी सीख ली है....

हमेशा तुझें अपना मानकर, 
तेरे दिए ग़मों को...
तेरा पेहलू हीं समझा....
ये इत्तेफाक था या किसी की बद्दुआ का असर |
की मेरी मंजिले हीं तनहा होने लगी |

बारिश की तरह बह गया वो सारा प्यार,
जो बीते कल में मुझें बाँट लिया करते थे, कभी |
वो आज अपना हीं एक अलग हिस्सा मांगने लगें |

लेकिन मेरी भरी आँखों ने,
ये अदा भी सीख ली है....
तूंने जितना गम दिया,
उसें भी मैंने अपना हीं, कह दिया |

वो प्यार भरें लम्हें, भुलाएँ नहीं भूलते
बस यादें अपनी है,
नई हो या पुरानीं हो क्या फरक्का पड़ता है ??
फिर भी इस जिंदगीभर की इस कमाई में
कमिशन तो तुम्हारा भी पूरा-पूरा बनता है |


7 comments:

  1. अच्छा लिखा है...

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  2. yashoda agrawal ज़ी शुक्रिया |

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  3. सुंदर प्रस्तुति

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  4. बहुत सुंदर रचना

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    1. Smita Singh ज़ी शुक्रिया |

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