Friday, June 20, 2014

एक कयामत

" ना रुसवा ..होने का है ...कोई डर मुझे ..."
" ना कयामत का है ,कोई खोफ ..| "
" ऐ मेरे मेहबूब .. तू तो खुद ...
" एक कयामत " है, 

और मुझपर होता, हर पल कहर तेरा |

तो अब तू ही बता ...??
मैं ऱोज तड़पता हूँ, जो तुझें याद कर |
मुझें यकीं नहीं है, कयामत जब आयेगी...
शायद हीं तेरे दिए दर्द को भुला पायेगी  ??

" क्यों तेरी गलियों में ना आऊँ ??
मोहोब्बत ना होगी, तुझसे तो सहीं ..

हम अपना जख्म ताज़ा कर जायेगे " |

" नफरत भरी निगाहों से ना देख मुझे ..."
" मेरे लबो में बसा है ,बेसुमार प्यार तेरा | "


हँस दें ज़रा बद्दुआओं देकर, 
इसमें तो मेरा हीं हक़ है |
अगर मुझें उजड़ता देख, 
जो तेरी आँखें भी चमकती है ...

खुद को तेरा परवाना कहलाने 
एक फक्र है | 
खुशनसीबी है, ये की खाक हो जाऊंगा 
तेरे इश्क में, 
बस एक इल्तजा है ...
की तेरे सुरमें में मेरी राख की चंद छिटें हो |

" मुझे यकीं है ..ना तुझे 

आज मेरी जरूरत है "
और ना कल होगी ..|"
" पर याद रखना जब तक ..
जीना होगा --
इस दिल में सिर्फ तू होगी,

वरना साँस लेने से, हसीन मौत होगी |"

2 comments:

  1. भावनाओं को बखूबी लिखा है ..मन की कश्मकश को प्रश्न के माध्यम से उकेरा है .. अच्छी प्रस्तुति

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