जो मैं बुलाऊ उसे और वो सुनकर भी इसे अनसुना कर दे |
पर इस पर भी मुझे रोना नहीं आता, बस चीख निकलती है ||
जिसे कोई समझ नहीं पाता है , सुन नहीं पाता है |
और मुझ पर ही, चाहत में रुसवाई का इल्जाम लगा जाता है ||
क्या कोई इतनी आसानी से, किसी की दुनिया से दूर चला जाता है |
जो इतना बुलाने के बाद भी, सुन नहीं पाता है , लोटकर नहीं आता है ||
कहा खोजू उसे वो हर जगह मुझे हर बार दिख जाता है |
पर ना जाने उसने कौन सा काला चश्मा लगा रखा है ||
की मुझे और मेरी तकलीफों की ओर एक नज़र भी नहीं दे पाता है |||
ये तड़प नहीं है, " दर्द है इश्क" का जो हर सुबह के साथ बढता ही चला जाता है |
लेकिन जब रात आती है , नींद भी आ जाती है ||
बस नहीं आती मीठे सपने, क्योंकि सपनो में भी उसकी ही याद आती है |||
पर इस पर भी मुझे रोना नहीं आता, बस चीख निकलती है ||
जिसे कोई समझ नहीं पाता है , सुन नहीं पाता है |
और मुझ पर ही, चाहत में रुसवाई का इल्जाम लगा जाता है ||
क्या कोई इतनी आसानी से, किसी की दुनिया से दूर चला जाता है |
जो इतना बुलाने के बाद भी, सुन नहीं पाता है , लोटकर नहीं आता है ||
कहा खोजू उसे वो हर जगह मुझे हर बार दिख जाता है |
पर ना जाने उसने कौन सा काला चश्मा लगा रखा है ||
की मुझे और मेरी तकलीफों की ओर एक नज़र भी नहीं दे पाता है |||
ये तड़प नहीं है, " दर्द है इश्क" का जो हर सुबह के साथ बढता ही चला जाता है |
लेकिन जब रात आती है , नींद भी आ जाती है ||
बस नहीं आती मीठे सपने, क्योंकि सपनो में भी उसकी ही याद आती है |||
क्या बात है....
ReplyDeletedhanywad atul ji..
ReplyDeleteबारिश की गिरती बूँद का दर्द .... बिछुड जाना बादल के दरमियान से .. पता नही कहाँ तक ले जायेंगी आंधियां ... आंसू की तरह बिखरती सी ... चल पडी बिना मंजिल को जाने ... अपनों से बिछड़ने की घुटन सीने में दबाकर ....मंजिल का सधा सपना कब का पीछे रह गया ... जाने किन अंधेरों में गुम हुआ ...किसी राजकुमारी की आँखों में बसकर .... मगर ... बूँद को बिखरना था .. सदियों से इंतज़ार करते किसी सीने पर ... दब गया दर्द स्वागत के स्वरों में ... उस नन्हे से पौधे को देखकर आज भी ... नतमस्तक होने को जी चाहता है ... बूँद की शहादत को याद करते करते ... ना जाने कबके भुला चुके ... जो मिला था अपनों से बिछड़ने पर ...बारिश की गिरती बूँद का दर्द!!
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