इस जन्म का प्यार है, हमारा |
और इसे जन्म में ही है,
..........प्यास बुझानी |
दो चुटकी ही सही सिंदूर की ,
अब तो तेरे नाम की ही है,
...................सजानी |
प्यार का रस
तो शहद सा मीठा है ,
जिसके नशे में मुझे रमजाने दे |
इसे मेरी दीवानगी कहो या प्यार ,
अब तो मुझे अपने दिल में समाने दे |
ये साथ,
कोई डोर सा पतला नहीं |
जो अब कभी टूट पायेगा |
तुम्हारी दासी बन रहूगी , उम्र भर |
अब तो मरने के बाद ही ,
....... तुम्हारा हाथ छूट पायेगा |
और इसे जन्म में ही है,
..........प्यास बुझानी |
दो चुटकी ही सही सिंदूर की ,
अब तो तेरे नाम की ही है,
...................सजानी |
प्यार का रस
तो शहद सा मीठा है ,
जिसके नशे में मुझे रमजाने दे |
इसे मेरी दीवानगी कहो या प्यार ,
अब तो मुझे अपने दिल में समाने दे |
ये साथ,
कोई डोर सा पतला नहीं |
जो अब कभी टूट पायेगा |
तुम्हारी दासी बन रहूगी , उम्र भर |
अब तो मरने के बाद ही ,
....... तुम्हारा हाथ छूट पायेगा |
बधाई आपको ... आपकी जीत को !
ReplyDeleteढलते दिन की परछाइयों की तरह उनके आने का इन्जार लंबा ही होता जा रहा है ...
ReplyDeleteमेरी डूबती आशाओं को देख रहा हूँ .... शनै शनै लाल होकर डूबते सूरज में ....
ये लाल रंग वही तो है जो मेरी भावनाओं का खून है ...
उस अंतहीन विश्वास का अंत जिसके सहारे ...अब तक जीवन की गाड़ी को खींचता आया हूँ ..
अभी कुछ समय बाद ... अँधेरे में किस ओर ... बढ़ चलूं ... आकाश में उड़ते परिंदों की तरह..
एक फर्क है ....इनको अपने नीड की पहचान है .... मेरे नीड़ की पहचान ...कैसे करूँ ..
खुद अपनी पहचान भूलता जा रहा हू इन गहराते अंधेरों में ... चला जा रहा हूँ ....
यादों की बैसाखियों का ही तो सहारा है .. डरता हूँ ... कही कोइ छीन ना ले ....
दिल को दहला रहा है .... लुटेरों का डर पग पग पर...आज तक ...
लुटता ही तो रहा हूँ ... कभी मिलने के बहाने ...लुटा ... तो कभी बिछड कर ...
कभी रिश्तों के बहाने .. तो ..कभी दिल को लूटा गया ..तो कभी विश्वास को ...
पूरे जोर से चिल्लाने पर भी आवाज़ कंठों से निकल नहीं रही ...
रुंध चले हैं... लंबी ..हिचकियाँ भी अब उनींदी हो चली हैं ...
कास कोइ होता इस सुनसान में जो .... फिर से हमें कहता कि ,
डर मत .. में साथ हूँ ... चाहे लूटने के लिए ही सही ...पर ..
कम से कम इन दर्द देती यादों को सहेजने की ताकत तो नशीब होती
फिर ना होती मुझे जलन इन ढलती रोशनियों से .... काट लूंगा एक रात और ....बीते सालों की तरह ही...
इन ढलते सूरज की परछाइयों की तरह लंबे होते इन्तजार में तेरे ...
R.N.Soni 'अक्षर'
bahut pyara likha hai aapne ji ...dhanywad ji
ReplyDeletenice dear
ReplyDeleteiss pyar ko aap sambhal ker rakhiye dosto ke liye,
ReplyDeletehum dosto ke liye nazrana hai aapka
thanks all ji ...
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत रचना....सुंदर भावों के साथ सुंदर शब्द
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