जख्म देने वाला जब बेफ़िकर हो , और कहे क्या इस जख्म से तुमको दर्द होता है |
तो मन होता है , ये कहा दू की ये जख्म तो कुछ भी नहीं ||
जो तुमने पूछ इस तरह.... तो उससे भी दुगना जख्म कर दिया |||
अगर प्यार ना करती , तो मैं आज भी खुश होती शायद अब जैसे नहीं होती |
अब तो ये हालत है , की किसी ने मेरे दिल की दिवारी को आधा रंगा और आधे में ही छोड़ दिया ||
क्या छुपाऊ अपना गम ज़माने से, जब तुमने हमारे प्यारी की जमीन में खिलता गुलाब ही तोड़ दिया |
अब तो जिंदगी इस तरह सी लगाती है , मानो मैं जी नहीं रही हु, बस अपने टूटे सपनो को बटोर रही हु ||
तुम कहते थे , की मैं हु तुम्हारी परछाई तो तुमने भला कैसे अपनी परछाई को पीछे छोड़ दिया |||
मानती हु की मैं अँधेरा हु , पर तुमने एक बार ना सोचो की बिना परछाई के मैं कैसे रहूगा |
बस रौशनी का हाथ थामा और अँधेरे में अपनी ही परछाई को पीछे छोड़ दिया ||
अब तो जिन्दगी बेजार बंजर सी लगती है , जिसमे बस दरार नहीं पड़ी है पर उसकी सारी नमी सुक चुकी है |
मैं मानती हु , की मैं गुनहगार हु तुम्हारी तो चलो खुशिया मनाओ, मेरा सपनो का घर टूट चूका है..... अब मेरी है बारी ||
तो मन होता है , ये कहा दू की ये जख्म तो कुछ भी नहीं ||
जो तुमने पूछ इस तरह.... तो उससे भी दुगना जख्म कर दिया |||
अगर प्यार ना करती , तो मैं आज भी खुश होती शायद अब जैसे नहीं होती |
अब तो ये हालत है , की किसी ने मेरे दिल की दिवारी को आधा रंगा और आधे में ही छोड़ दिया ||
क्या छुपाऊ अपना गम ज़माने से, जब तुमने हमारे प्यारी की जमीन में खिलता गुलाब ही तोड़ दिया |
अब तो जिंदगी इस तरह सी लगाती है , मानो मैं जी नहीं रही हु, बस अपने टूटे सपनो को बटोर रही हु ||
तुम कहते थे , की मैं हु तुम्हारी परछाई तो तुमने भला कैसे अपनी परछाई को पीछे छोड़ दिया |||
मानती हु की मैं अँधेरा हु , पर तुमने एक बार ना सोचो की बिना परछाई के मैं कैसे रहूगा |
बस रौशनी का हाथ थामा और अँधेरे में अपनी ही परछाई को पीछे छोड़ दिया ||
अब तो जिन्दगी बेजार बंजर सी लगती है , जिसमे बस दरार नहीं पड़ी है पर उसकी सारी नमी सुक चुकी है |
मैं मानती हु , की मैं गुनहगार हु तुम्हारी तो चलो खुशिया मनाओ, मेरा सपनो का घर टूट चूका है..... अब मेरी है बारी ||
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