जो शीतल पवन ही अगन लगाये
तो ये मन अपने मित को ही बुलाये |
कोई कहे धुन इसे, कोई संगीत बताये |
पर कोई मेरी, करुण पुकार ...
की विरहा को समझ नहीं पाये |
उनके लोट आने की चाह में
अब तो मेरा भी मन तरशाये |
प्रित निभाना जो हम सीखे
तो कौन मुझ अकेली को
प्रित सिखाये |
जो घड़ी की बात हो
तो ये समय और पल
उनके आने से
सिर्फ मेरे लिए ही
क्यों नहीं रुक जाये ....
क्यों हर पल गिनाये
मुझको उनसे दूर होना है |
और ये बात
बार-बार क्यों बताये ??
तो ये मन अपने मित को ही बुलाये |
कोई कहे धुन इसे, कोई संगीत बताये |
पर कोई मेरी, करुण पुकार ...
की विरहा को समझ नहीं पाये |
उनके लोट आने की चाह में
अब तो मेरा भी मन तरशाये |
प्रित निभाना जो हम सीखे
तो कौन मुझ अकेली को
प्रित सिखाये |
जो घड़ी की बात हो
तो ये समय और पल
उनके आने से
सिर्फ मेरे लिए ही
क्यों नहीं रुक जाये ....
क्यों हर पल गिनाये
मुझको उनसे दूर होना है |
और ये बात
बार-बार क्यों बताये ??
बहुत सुंदर रचना,....अच्छी प्रस्तुति,...
ReplyDeleteमेरी नई रचना...काव्यान्जलि ...बेटी और पेड़... में click करे
धन्यवाद जी
ReplyDeleteवाह कमाल !
ReplyDeleteसुंदर रचना के लिए बधाई स्वीकारें !
बहुत ही सुंदर भावों का प्रस्फुटन देखने को मिला है । मेरे नए पोस्ट उपेंद्र नाथ अश्क पर आपकी सादर उपस्थिति की जरूरत है । धन्यवाद ।
ReplyDeletePoint आपकी रचना की तारीफ में कुछ पंत्तियाँ प्रस्तुत हैं,
ReplyDeleteकृपया स्वीकार करें:-
प्रीत निभाना जबसे सीखे,
तब से उनको भूल न पाये।
जितना सोचूँ उन्हें भुलाऊँ,
उतने ही यादों में आये।
जतन किये हैं मैंने अगनित,
रहे जतन सब धरे धराये।
व्यस्त किया कामों में खुद को,
नहीं काम में मन लग पाये।
सखि मित्रों को व्यथा बताऊँ,
कोई मेरे काम न आये।
साथ सभी अपनों छोड़ा,
याद तुम्हारी साथ निभाये।
इससे खद के कहने पर भी,
याद तुम्हारी छोड़ न पाये।
सुंदर रचना।
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