ये जो दर्द है मेरा, वो जुबा पर |
हर बार नये जस्बातो के साथ आ जाता है ||
ना कोई समझ पाता है , कितनी गहरी चोट खाई है मैंने |||
और ना मेरी जुबा से निकला दर्द , इसे मरहम बन भर पाता है ||||
ये ख़ुशी की बात है , जब मेरा दर्द भी लोगो को अच्छा लग जाता है |
जिसने ये दर्द दिया है, वो भले पलटकर ना देखे मुझे ||
लेकिन कोई दूसरा उसे सुनकर मेरी वाह-वाही कर जाता है |||
मानती हु की , मेरी ही गलती थी |
मैंने किसी अपने से ही ||
थोड़ी सी खुशिया मांगली थी |||
लेकिन अब क्या मिला मुझे |
जो मैंने बस थोड़ी सी बहार की चाहत में ||
अपनी पूरी जिन्दगी ही जलाली ||||
हर बार नये जस्बातो के साथ आ जाता है ||
ना कोई समझ पाता है , कितनी गहरी चोट खाई है मैंने |||
और ना मेरी जुबा से निकला दर्द , इसे मरहम बन भर पाता है ||||
ये ख़ुशी की बात है , जब मेरा दर्द भी लोगो को अच्छा लग जाता है |
जिसने ये दर्द दिया है, वो भले पलटकर ना देखे मुझे ||
लेकिन कोई दूसरा उसे सुनकर मेरी वाह-वाही कर जाता है |||
मानती हु की , मेरी ही गलती थी |
मैंने किसी अपने से ही ||
थोड़ी सी खुशिया मांगली थी |||
लेकिन अब क्या मिला मुझे |
जो मैंने बस थोड़ी सी बहार की चाहत में ||
अपनी पूरी जिन्दगी ही जलाली ||||
बहुत खूब।
ReplyDeletedhanywad atul ji
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