Wednesday, December 21, 2011

मैं भले धुप में जलजाऊ ....

जो हाथो को मैं 
जोरो से लहराती हूँ |
तो हर जगह उनका ही 
अहसास पाती हूँ |

और उनकी ही
पुरानी यादो से
जुड़ सी जाती हूँ |

मैं भले धुप के बहाने
रौशनी में खड़ी
हो जाती हूँ |

पर दिल में तो
ये चाहत होती है |
की मैं भले धुप में
जलजाऊ |

पर किसी तरह
उनकी छुवन
और उनकी प्रित
को रौशनी में
दोबारा पाऊ |

8 comments:

  1. सुंदर रचना।
    गहरे भाव.....

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  2. बहुत सुंदर शब्दों से लिखी प्रेमभरे अहसासों की खुबशुरत अभिव्यक्ति...
    अच्छी पोस्ट,..मेरे पोस्ट पर आने के लिए बहुत२ आभार,...
    यदि आप समर्थक बने तो मुझे खुशी होगी,..आपके इस रचना से प्रभावित होकर मै आपका समर्थक बन रहा हूँ,....मेरी नई पोस्ट के लिए काव्यान्जलि मे click करे

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  3. धन्यवाद आपका जी ....

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  4. प्‍यार की सुंदर अभीव्‍यक्‍ती.........

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  5. धन्यवाद आपका जी ....

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  6. तो हर जगह उनका ही
    अहसास पाती हूँ |
    कोमल - कोमल प्यारा सा एहसास ..कुछ गुदगुदाता सा .....!!

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  7. धन्यवाद जी ....

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  8. बहुत खूब, बधाई.
    मेरे ब्लॉग पर भी पधार कर अनुगृहीत करें.

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