Wednesday, December 21, 2011

जब कभी भी मुस्कराती हूँ , उन्हें सामने ही पाती हूँ ...

कोई और हँसी 
इतनी सुन्दर कहा 
जितना प्यारा है ,
मेंहबूब मेरा |

अब तो लोग से भी ,
कहते डर सा
लगता है |
कही कोई छिन ना
ले मुझसे
ये मेरी हँसी |

लेकिन अब में अपनी हँसी
छुपा भी नहीं पाती हूँ |
जब कभी भी मुस्कराती हूँ ,
उन्हें सामने ही पाती हूँ |

पर अगर मैं सच कहूँ तो |
मेरी ये बेकरारी अब ,
डर में बदल सी
जा रही है |

और अब तो
उनके साथ रहूँ |
या दूर
बस उनसे
कही बिछड़ ना
जाऊ इस डर
से अधमरी
सी हो जा रही हूँ |

9 comments:

  1. वाह जी वाह....बहुत ही सुन्दर कविता...गहरे उतर गयी..

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  2. बीछडने का डर तो हमेशा बना रहता है प्रेम में
    सुंदर रचना !


    मेरी नई रचना ख्वाबों में चले आओ

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  3. kisi ko paa lene ke baad bichhudne ka dar ban jana swabhavik hai.bahut achcha likha.

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  4. आप सभी का आभार जी ....

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  5. जब कभी भी मुस्कराती हूँ
    उन्हें सामने पाती हूँ,....बेहतरीन पन्तियाँ खुबशुरत पोस्ट....

    मेरी नई रचना के लिए महत्व मे click करे

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  6. पर अगर मैं सच कहूँ तो |
    मेरी ये बेकरारी अब ,
    डर में बदल सी
    जा रही है |
    vah abhar .

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  7. वाह...!!!
    गहरे अहसास।
    सुंदर रचना।

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