Sunday, June 24, 2012

जिन्दगी जीने की हड़बड़ी में

ये जमीं जीने के लिए बनी ,
और जिन्दगी का साथ कब तक ??

आज जो आवाजें खामोशियों को छोड़ ,
गुन-गुनाना चाहती है , इस जग में ...
कल कहीं खो सी जाएगी, शांति के नभ में |

अपने जिन्दा होने पर यकीन करने ...
हम खुशियों को परवाह करते है |
बुल - बुलों में भरी हवा की तरह ...
खुशियों को भी भरा करते है  |

जिन्दगी जीने की हड़बड़ी में ,
किसे अपना माने ... हम ??
अब तो .. अनजान रिश्तों को भी , 
जरूरतों की तरह चुना करते है |



5 comments:

  1. धन्यवाद जी ...

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  2. kya bat hai madam ji kisi ne apke risto ko bhi yese he chuna kya...............

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  3. sunder shabdo aur bhawo ko smete hua ek bahoot hi khoobsoort rachna

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  4. धन्यवाद आप सभी का बहुत - बहुत आभार ...

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