जीना भी, क्या जीना है ?
ना सोचो हम खुश है ,
बस ग़मों पर ....
हँसने का हुनर ...
अब जाकर सिखा है |
अरमानों को दफ़न कर ..
जीना भी, क्या जीना है ?
जब भी हँसते है ,
तो अनसुनी चीख ...
भी निकल आती है |
ना सोचों कुछ दे पायेगे ,
अब दुनिया को ....
हमारे पास जो था ...
उसे तो एक ना के साथ
ही हार बैठे है |
ना सोचों कुछ दे पायेगे ,
ReplyDeleteअब दुनिया को ....
हमारे पास जो था ...
उसे तो एक ना के साथ
ही हार बैठे है |
बहुत बेहतरीन सुंदर रचना,,,,,
RECENT POST ,,,,,पर याद छोड़ जायेगें,,,,,
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteइस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (17-06-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
बेहतरीन
ReplyDeleteसादर
aap sabhi ka aabhar
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