शूल पर लगी आग ,
उसूलों ने छोड़ा साथ ...
मन की मत मारी गयी |
भटके मन ने ढूंढे ..
बचने के सौ रस्ते .. |
तोल - मोल के ...
नफे नुकसान में ,
मन की भी बोली लग गयी .... |
व्यापारियों के बीच फसा मन ,
अपना मोल मांग ना पाया ....
मन के चोरों से ठगा ,ये रोते ...
मन की मंडी में ,
अपनी भी बोली लगवाया |
कुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।
ReplyDeleteनई पोस्ट .....मैं लिखता हूँ पर आपका स्वगत है
Beautiful as always.
ReplyDeleteIt is pleasure reading your poems.
मनोभाव का सुंदर सम्प्रेषण,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: आश्वासन,,,,,
इस सार्थक पोस्ट के लिए बधाई स्वीकारें .
Deleteबहुत सुन्दर मनो भावों को शब्दों में पिरोती रचना
ReplyDeleteमन की मंदी में अपन बोली लगवाने की नौबत आना ... गहरे जज्बात लिए रचना ..
ReplyDeleteसटीक बात कहती सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
धन्यवाद आप सभी का .....आभार
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ...
ReplyDeleteभटके मन ने ढूंढे ..बचने के सौ रस्ते .. |तोल - मोल के ...नफे नुकसान में ,मन की भी बोली लग गयी .... |
ReplyDeletebahut hi sundar.......
मन की भी बोली लग गई.... सुंदर मनोभावों को व्यक्त करती रचना.
ReplyDeleteधन्यवाद आप सभी का
ReplyDelete