Friday, June 15, 2012

जीना भी, क्या जीना है ?

ना सोचो हम खुश है ,
बस ग़मों पर ....
हँसने का हुनर ...
अब जाकर सिखा है |

अरमानों को दफ़न कर ..
जीना भी, क्या जीना है ?
जब भी हँसते है ,
तो अनसुनी चीख ...
भी निकल आती है |

ना सोचों कुछ दे पायेगे ,
अब दुनिया को ....
हमारे पास जो था ...
उसे तो एक ना के साथ
ही हार बैठे है |




4 comments:

  1. ना सोचों कुछ दे पायेगे ,
    अब दुनिया को ....
    हमारे पास जो था ...
    उसे तो एक ना के साथ
    ही हार बैठे है |

    बहुत बेहतरीन सुंदर रचना,,,,,

    RECENT POST ,,,,,पर याद छोड़ जायेगें,,,,,

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  2. बहुत अच्छी प्रस्तुति!
    इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (17-06-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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