Saturday, June 30, 2012

प्यार का नाम लेना , अब अच्छा नहीं लगता ...


बहुत अच्छा.. होता ,
जो रात का इंतजार ना होता  ..
तो, जो जलन - धुप ने दी है ..
उसे ही जीवन  बना लेते   |


यूँ  तो ये तपिश ,
अपनी है, जो किसी 
पराये ने दे दी है ....
सिर्फ शब्दों का खेल है , ये ..
क्योंकि प्यार का नाम लेना , 
अब अच्छा नहीं लगता |


ना कोई मोल है, इन बातों का ...
जो किसी बढ चले क़दमों को ..
बंद ना पाये , 
फीके पकवान से ये शब्द ....
पर हमने तो ढूंड के पाए है |


आज जो किसी को रश ना आये, तो क्या ??
कभी तो ये, प्रतिदिन उनकी भोजन का अंग होता था |

14 comments:

  1. यूँ तो ये तपिश ,
    अपनी है, जो किसी
    पराये ने दे दी है ....
    सिर्फ शब्दों का खेल है , ये ..
    क्योंकि प्यार का नाम लेना ,
    अब अच्छा नहीं लगता |


    बहुत सुंदर, अच्छी रचना

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  2. धन्यवाद आभार ...

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  3. छीके अब मुंह खोल के, कै मीठे-पकवान ।

    जगह-जगह खाता रहा, कम्बल ओढ़ उतान।

    कम्बल ओढ़ उतान, तपन की आदत डाले ।

    रहा बहुत मस्तान, आज मधुमेह सँभाले ।

    उच्च दाब पकवान, करे अब poit फ़ीके ।

    बदल गया इंसान, खोल में बैठा छींके ।।



    see your link on-
    dineshkidillagi.blogspot.in

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  4. वाह..
    यूँ तो ये तपिश ,
    अपनी है, जो किसी
    पराये ने दे दी है ....
    सिर्फ शब्दों का खेल है , ये ..
    क्योंकि प्यार का नाम लेना ,
    अब अच्छा नहीं लगता |

    बहुत सुन्दर!!!!

    अनु

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  5. बहुत उम्दा अभिव्यक्ति,,,सुंदर प्रस्तुत रचना,,,,
    पोस्ट पर आइये स्वागत है,

    MY RECENT POST....काव्यान्जलि...:चाय

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  6. आप सभी का बहुत बहुत आभार ...

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  7. वाह..
    बहुत सुन्दर....

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  8. pahli baar aapke blog par aai hu.panktiyan sach me acchi lagi

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  9. धन्यवाद बहुत - बहुत आभार .....

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